Saturday, 31 August 2019

Chaurasi kshtriya samaj

राजपूत का मतलब : क्षत्रिय 

“दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण,

चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय, दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग- अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है
 राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा, इसलिये ही राजपूत नाम चलाl

लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता!

यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म “सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय” का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति की हुयी              अत: राजपूतों का गौरवशाली इतिहास पूरे भारत वर्ष मे प्रसिद्ध है ओर इनके सम्पूर्ण भारत मे अनेक जगहो राज्य रजवाड़े रहे है   
|||| चौरासी राजपूत समाज ( कालपी,बुन्देलखण्ड)|||                                                                                                       ऐसे ही एक राजपूतों के क्षेत्र की बात हम करने जा रहे है   !      जी हाँ हम बात कर रहे हैं बुन्देलखण्ड के जालौन जिले और कानपुर देहात जिले मे बसने वाले एक ठाकुर (राजपूत) समाज की, यहाँ के लोग अपने आप को "चौरासी का ठाकुर" कहलवाना पंसद करते है |                                                  यह क्षेत्र यमुना नदी के बीहड़ पट्टी मे आता है यहाँ पर ठाकुरो के 84 गाँव स्थित है, इनका इतिहास महान ऐतिहासिक शहर कालपी से मिलता जुलता है (जो आज लुप्त होता जा रहा हैं)    इस क्षेत्र के बारे मे ज्यादा ऐतिहासिक स्त्रोत उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ ऐतिहासिक साक्ष्यों मे इनसे मिलता जुलता विवरण जरूर मिलता है                                                                   ऐतेहासिक साक्ष्यों के अनुसार बुन्देलखण्ड के चंदेल वंश और बनाफर यहाँ के मूल निवासी थे जिनका 8 वीं सदी से लेकर 14 वीं सदी तक यहाँ शासन रहा था | इन चौरासी के ठाकुरो मे चन्देल,बनाफर,बैस ठाकुर भी है लेकिन इनमें अधिकतर  राजपूत राजस्थान और उत्तर पश्चिम उत्तर प्रदेश के वंशंज है , जैसे चौहान,जादोन ,कछवाहा, लेकिन जो राजपूत चोरासी के बाहर के हैं जैसे कदौरा, उरई , माधौगढ़ और चम्बल क्षेत्र के वे भी इन्ही के वंशो से मिलते जुलते है, लेकिन चौरासी गाँव के ठाकुरो का बाहर के किसी भी राजपूत से कोई  सबंध नहीं होता है इसीलिए  इनकी विशेष पहचान है,कहते है कि कालपी और व्यास क्षेत्र के अधिकतर मंदिरों की मुगल आक्रमण से इन्ही ने रक्षा की थी, और मराठा काल मे कालपी रियासत के अधिकतर सैनिक यही से आते थे |                                                                                                                                            ||उत्पत्ति ||                                                                                                                                                               वैसे जालौन जिले की स्थानीय लोक कथाओ मे इनकी अनेक कहानिया है जिनमें अधिकतर मिथकीय झूठ है जैसे इन चौरासी के ठाकुरो का मुस्लिम से हिंदू बनना ,जबकि ये प्रमाण कही नहीं मिलता,                                                                      लेकिन इनके इतिहास का एक वास्तविक प्रमाण 1526 ई० लेकर 1532 तक मिलता हैं                                            इतिहास के अनुसार जब 1527 ई० मे राणा सांगा खानवा का युद्ध हारने के बाद जब बेहोशी की हालत से वापस लौटे तो उन्होंने अपनी बची कुची सेना लेकर बाबर से फिर से लड़ने का निर्णय लिया था और वो चंदेरी के रास्ते  पचनद क्षेत्र , होते हुये कालपी पहुंचे थे जहाँ से विशाल मुगल सेना का काफिला गुजर रहा था, लेकिन राणा सांगा का एक पैर,आखं और हाथ दोनो चले गये थे इसलिए उनके सामंतों ने उन्हें युद्ध ना लड़ने की सलाह दी थी क्योंकि उनकी सेना भी घायल थी और काफी सैनिक खानवा युद्ध मे मारे गये थे ,लेकिन सामंतो का कहना ना मानने पर राणा सांगा और उनके सेनापति के खाने मे जहर मिला दिया गया और उनकी मृत्यु हो गयी,                                                                                                             जिनके अभाव मे पूरी राजपूत सेना तितर बितर हो गयी इनमे कछवाहा, चौहान,परमार,सोलंकी,गहड़वाल,राठौड़,सिसोदिया जैसे अनेक राजवंशों के सैनिक से जिन्हें 15-16 वीं शताब्दी मे "राजपूत संघ" कहा जाता था, और राजपूत सैनिक यहाँ बनाफर और चन्देल राजपूत के सहयोग से वहीं यमुना क्षेत्र और बुन्देलखण्ड मे बस गये तथा वहाँ के मूल राजपूतो से विवाह संबंध बनाकर अपने अपने गावों की स्थापना की ये राजपूत उत्तर पूर्वी बुन्देलखण्ड के क्षेत्र मे बसे थे और उन्होंने अपनी रियासत कालप्रिया नगर (वर्तमान कालपी) को बनाया था और यहाँ कई  दुर्ग, घाट बनवाये थे जिनमे चौरासी गुम्बद भी शामिल था किन्तु चौरासी समाज तब नही बना था 👉👉👉                                                                                                   || विवादित इतिहास||                                                         जब 1530 ई० तक पूरे गंगा - यमुना क्षेत्र  पर मुगलो ने राज    कर लिया तो जून 1530 के आस पास वो बुन्देलखण्ड पर    चढाई के लिए आगे आये तो उन्हे पहले कालपी पार करना था लेकिन विशाल सेना लेते हुये भी वो राजपूत संघ के गावो से हार गये, लेकिन अक्टूबर 1530 के आसपास दोबारा हमले मे उन्होने कई बुन्देली सरदार जैसे अकबरपुर ईटैरा के अहीरो को अपने साथ लेकर उन राजपूतो को बुरी तरह हर दिया और कई गाँव उजाड़ दिये तथा कालपी मे अधिकतर हिन्दूओ को मुस्लिम बना दिया गया,और इस लड़ाई में जालौन जिले के बाकी राजपूतो ने यमुना बीहड़ के राजपूतो की कोई मदद नहीं की बस कुछ ही बुन्देला गावों ने उनकी मदद की थी,लेकिन परिणाम ये हुआ कि बाबर की सेना उरई पार कर महोबा तक पहुँच गयी थी और मेदिनीराय जैसे शासक के बुन्देलखण्ड मे मुगलिया परचम लहरा गया था,                                                               और यहाँ दूसरी तरफ कालपी और कदौरा के नवाबो ने कालपी राजधानी तो हथिया ली थी लेकिन वो इन सरदारों के गावों मे अपनी पहुँच नहीं बना पाये थे , कुछ समय बाद उन्होंने राजपूतो  द्वारा बनाये गये चौरासी गुम्बद पर कब्जा करके उसमें 1531-  32 ई० में बाबा लोधी शाह की कब्र बनवा दी (जिसे आज लोधी शाह का मकबरा कहते है) ,                                                   और यहाँ के राजपूतो ने अपने 84 गाँव बाकी राजपूतो से साथ ना देने के कारण अलग कर लिये और अपने ही गावों मे शादी ब्याह करने लगे और अपनी एक अलग पहचान बनायी                    
||वर्तमान परिस्थिति ||       
इनके गावों मे चौहान राजपूतो के गाँव सबसे ज्यादा है,और उसके बाद कछवाहा राजपूतो के, और इनमे जादौन,बैस चन्देल,बनाफर, जैसे कई राजपूत जाति हैं                               || प्रमुख गावं||
चौरासी के गावों मे मुसमरिया,महेवा, अनवां, दमनपुर,सरसेला,जैनपुर,मल्थुआ,चुर्खी, नादई,बैरई, खूजा रामपुर, वैना, खाखंरी, सिकरी रहमान पुर,सिलहरा, भिखारी,लोहई,सिम्हारा, खैरई, भाल,अमीटा, अटरिया,औंता, रूरा अडडू, जहरूलिया,जैसे प्रमुख गाँव है जिनमे सबसे ऐतिहासिक गाँव भाल है जहाँ मैनपुरी के कछवाहाओ ने भाला गाड़ा,तथा यहाँ के चौहानों ने  बुन्देलखण्ड के राजा छत्रसाल का  हमेशा साथ दिया और कई सैनिक चंदेरी और महोबा में गये थे 🙏🙏🙏🙏🙏
जय भवानी,

5 comments:

  1. Chorasi thkur me bhi hu vidisha m.p se yaha m.p ke rajgadh jile me lagbhag sare hi chorasi thkur he

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  2. Chorasi thkur hum kis wajah se kehlate he iski kisiko koi jankari he to please share kare

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  3. Mere pas ek theori he humare yaha bolte he ki pehle ke time per humari bail gadi me balo ke sir per chorasi ghungru ki ek katar badhi hoti thi jo humari pehchan thi is wajah se hum chorasi thakur kehlate he

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  4. Duanyabad bhai jisne bhi ye blog banaya he uska kioki chorasi thakur ko bohot kam loge jante he Jabki bade bade rajput ke gotre chorasi thakur me hi ate he jese chowhan sisodia parmar dayma jese gotra samil he

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  5. हमे अपने 84 के समाज की एक एक सच्चाई खोजनि है जय श्री राम

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