Friday, 7 January 2022

राजपूतों द्वारा जीते गये सभी युद्ध (712-1808 AD)

 आजकल कुछ लोगों का एजंडा बन गया है कि राजपूत कोई युद्ध जीते ही नहीं वो केवल हारे हुये योद्धा थे 

बीबीसी और वामपंथी मीडिया, तथा राजपूत विरोधी कुछ लोग इस झूठ को ज्यादा प्रचलित करते है  

अखिर सच क्या है सबूतों के साथ हम आपको बताते है 🙏

➡️➡️ राजपूतो द्वारा जीते गये सभी प्रमुख युद्ध ⬇️⬇️🚩

♦अरबों के खिलाफ युद्ध 713 ई० -बप्पा रावल और नागभट्ट प्रतिहार 🆚⚔️ जुनैद रहमान ,मुहम्मद बिन कासिम ( उमायद खलीफा अभियान) 

इस युद्ध में बप्पा रावल ने अरबों को सिंध क्षेत्र में बुरी तरह पराजित किया तथा ईरान तक खदेड़ा 

♦739 ई० नवसारी-लता प्रदेश का युद्ध - विक्रमादित्य चालुक्य द्वितीय 🆚 उम्मायद खलीफा और अरब सेनाएँ, 

इस युद्ध में खलीफा सेना की हार हुयी तथा उन्हें अपना अभियान बंद करके अरब लौटना पड़ा 

(अगले 90 सालो तक कोई आक्रमण नहीं )

♦813-15 ई० सपादलक्ष्य चित्तौड़ का युद्ध - रावल खुमाण द्वितीय बनाम 🆚 तुर्क जनरल अलमामून ( खलीफा अलरशीद का बेटा)

यह युद्ध महत्वपूर्ण बदलाव लाया जिसमें 23 बार तुर्को अरबो ने आक्रमण कर सिंधु क्षेत्र में उत्पात मचाया, लेकिन 24 वीं लड़ाई में खुमाण ने इन्हें बुरी तरह पराजित कर सिंध पार धकेल दिया 

♦833-42 ई० पश्चिम भारत का युद्ध - मिहिरभोज प्रतिहार 🆚 अरब एवं ईरानी खलीफा की सेनांए,

 इस युद्ध में प्रतिहारों ने अरबों को सबसे करारी शिकस्त दी और संपूर्ण बलूचिस्तान,गांधार तथा उत्तर सिंधु क्षेत्र पर कब्जा किया ( इस महत्वपूर्ण युद्ध के कारण अगले 158 वर्षों तक कोई आक्रमण नहीं हुआ) 

♦1019 ई० विघाधर चंदेल 🆚 महमूद गजनवी , 

इस युद्ध में दो करारी भिड़ंत हुयी जिनमें लाखो सैनिक मारे गये हालांकि अंत में विघाधर ने गजनवी को संधि पर विवश किया और गजनवी को वापस सिंधु लौटना पड़ा( इसके बाद 175 वर्ष तक कोई आक्रांता नहीं आया हालांकि भारत का पश्चिम क्षेत्र अफगानिस्तान और बलूचिस्तान जा चुका था)

इस प्रकार 417 वर्षों तक आपस में लडने वाले इन राजपूतों ने भारत को मुस्लिम आक्रांताओ को रोके रखा  

♦1173 ई० अहिन्लवाड़ा (कसाहरदा) का युद्ध - मूलराज सोलंकी 🆚 मुहम्मद गौरी, 

इस युद्ध में मूलराज ने गौरी को बुरी तरह पराजित किया तथा सिध के बाहर धकेल दिया (अगले 16 वर्षों तक गौरी ने सिंधु पार नहीं की)

♦1191 ई० तराईन का युद्ध, प्रथ्वीराज चौहान 🆚 मुहम्मद गौरी,

इसमें गौरी को शिकस्त मिली

लेकिन तराईन के द्वितीय युद्ध 1192 में गौरी ने प्रथ्वीराज को हराया तथा दिल्ली से राजपूतों को हटा दिया (बाकी भारत से नहीं )

♦1201 ई० अहिन्लवाड़ा का दूसरा युद्ध - भीमदेव सोलंकी🆚 मुहम्मद गौरी ,

 इस युद्ध में अत्याचारी गौरी को भीमदेव ने गुजरात में बुरी तरह से पराजित किया तथा स्वाभिमान के इस युद्ध के कारण गौरी दोबारा यमुना पारकर नीचे नहीं गया 

♦ 1226 ई० वर्चस्व का युद्ध - मेवात के भाटी राजपूत 🆚 इल्तुमिश 

: इस युद्ध में हरियाणा और बीकानेर के आसपास झड़पें हुयी जिसे इल्तुमिश की सेना नहीं रोक पायी और मेवाड़, गुजरात,मालवा, जेजाकभुक्ति ने विद्रोह कर अपने आप को स्वतंत्र कर दिया 

♦1227 ई० भूतल घाटी(भूताला) का युद्ध - मेवाड़ के रावल जैत्रसिंह बनाम🆚 इल्तुतमिश 

इस युद्ध में इल्तुतमिश की पराजय हुई तथा चौहान,राठौड़, कछवाहा राजपूतों के नेतृत्व में रावल जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश की तुर्क सेना को बुरी तरह पराजित किया और दिल्ली सुलतान का राजपूताना पर फतह अभियान नष्ट हुआ

♦1236 ई० रणथम्भौर का युद्ध - वागभट्ट चौहान 🆚 इल्तुमिश ( दिल्ली सुल्तान) - 

इस युद्ध में चार झड़पें हुयी जिसमें अंत में वागभट्ट ने विजय पायी और इल्तुमिश ने रणथम्भौर नहीं जीत पाया तथा सल्तनत का दक्षिण भारत अभियान यमुना में ही रूक गया 

♦1248 ई० मेवाड़ का युद्ध-

रावल जैत्रसिंह 🆚 सुल्तान नसीरूद्दीन मुहम्मद 

इस युद्ध में दिल्ली के नये सुल्तान बने नसीरूद्दीन मुहम्मद के मेवाड़ अभियान को गोगूंदा के पास रावल जैत्रसिंह के बेटे तेजसिंह के नेतृत्व में रोक दिया गया और इस लड़ाई में फिर एक बार दिल्ली सुल्तान की हार हुई ♦1283 ई० रणथम्भौर की लड़ाई - 

शक्ति देव चौहान 🆚 दिल्ली का गुलाम वंश, 

यहाँ पर चौहानों द्वारा दिल्ली की गुलाम वंश की सेना को पराजित किया गया 

♦1290 ई० छाणगढ़(झांइन) का युद्ध - हम्मीरदेव चौहान 🆚 जलालुद्दीन खिलजी - 

इस युद्ध में खिलजी की हिमाकत का चौहानों ने हराकर कड़ा जवाब दिया 

♦1292 ई० रणथम्भौर का दूसरा युद्ध - हम्मीरदेव चौहान🆚 जलालुद्दीन खिलजी - 

दोबारा हुये इस युद्ध में खिलजी को फिर हार झेलनी पड़ी और इस बार हम्मीरदेव ने आगरा, जेजाकभुक्ति, दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों को जीत लिया 

♦1302 ई० ' रणथम्भौर का तीसरा युद्ध - हम्मीरदेव चौहान 🆚 अलाउद्दीन खिलजी - 

यहाँ पर अल्लाउद्दीन की 3 लाख की सेना ने रणथम्भौर के नजदीक के दुर्ग पर हमला किया जबकि चौहानों के पास केवल 50 हजार की सेना थी लेकिन फिर भी भाग्य के कारण हम्मीरदेव ने अल्लाउद्दीन को बुरी तरह हरा दिया लेकिन हठी हम्मीर की रानी के जल जौहर ( हार के भ्रम और गद्दारों द्वारा खिलजी का झंडा किले पर लाने से) के कारण हम्मीरदेव ने अपना सिर काट दिया 

और खिलजी ने वापस लौट कर रणथम्भौर कब्जा लिया 

⭕ 1303 ई० में मेवाड़ के रावल रत्न सिंह को छुड़ाने के लिए वीर योद्धा गोरा और बादल ने अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना को दिल्ली में ही पराजित किया और उसके सेनापति जफर खान को मौत के घाट उतार दिया और ये दोनों योद्धा सिर कटने पर भी 1 घण्टे तक लड़ते रहे और रावल को मुक्त कराकर चित्तौड़ भेजा 

♦1321 ई० चित्तौड़ गढ़ का युद्ध - 

राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया 🆚 गयासुद्दीन तुगलक, इस युद्ध में दिल्ली द्वारा मेवाड़ को जीतने के लिए तुगलक फौज मेवाड़ के लिए रवाना हुई लेकिन बनास नदी पर ही राणा हम्मीर की विशाल सेना ने उन्हें पराजित कर चम्बल तक खदेड़ा 

♦1337 ई०कांगड़ा (हिमाचल का युद्ध)राजा पृथ्वीचंद कटोच राजपूत 🆚 मुहम्मद बिन तुगलक - 

इस युद्ध में 5000 हजार कटोच राजपूतों ने 1.50 लाख की मुस्लिम सैना को पहाड़ियों में काट डाला जिसमें केवल 10 आदमी वापस दिल्ली लौटे थे 

♦1336 ई० सिंगौली का युद्ध - राणा हमीरसिहं सिसोदिया 🆚 मुहम्मद बिन तुगलक - 

यह युद्ध उत्तर भारत में एक जबरदस्त रोमांचक मोड़ लाया जिसमें तुगलक की करारी हार हुयी और राणा हमीरसिहं ने तुगलक को 6 महीने तक मेवाड़ में बंदी बनाकर रखा और इसके कारण दिल्ली सल्तनत द्वारा जीते हुये अधिकांश क्षेत्र स्वतंत्र हो गये तथा मेवाड़ ने अपनी सीमा विस्तार की.

( सिंगौली में राणा की जीत ने तोमर,बुंदेलखंड,बंगाल हिमाचल सिंध के राजपूतों को आजाद कर दिया और सल्तनत 70 वर्षों तक कमजोर हो गयी)

♦1396 ई० मंडौर का युद्ध- राव चुंडा राठौड़ + राणा क्षत्र सिंह 🆚 तुगलक फौज और जफर खान - 

इस युद्ध में एक बार फिर राजपूतों का संघ बना और जफर खान मारा गया,दिल्ली सल्तनत की हार हुई तथा राठौड़ों का उदय हुआ उन्होंने सीवाना, सांभर, अजमेर, खाटू ,डीडवाना पर फतह प्राप्त की 

♦1472 ई० राठौड़ों की लड़ाई - राव जोधा 🆚 सैय्यद वंश - पहले से ही कमजोर सैय्यद वंश को राठौड़ों ने और कमजोर किया तथा बीकानेर,हरियाणा, के आसपास का हिस्सा दिल्ली से वापस जीता 

🔴राणा कुंभा 

♦ 1437 ई० सारंगपुर की लड़ाई - राणा कुंभा 🆚 महमूद खिलजी (मालवा का सुल्तान)- 

इस युद्ध में राणा कुंभा ने मालवा को मुसलमान शासकों से मुक्त कराया तथा महमूद खिलजी को मार दिया 

♦1440-42 गुजरात का वर्चस्व - राणा कुंभा 🆚 सुल्तान अहमद शाह - 

इस युद्ध में कुंभा ने अहमदशाह को पराजित कर गुजरात को जीता और अपने अधीन किया 

♦1443 ई० दिल्ली सल्तनत से युद्ध - राणा कुंभा🆚 सैय्यद मुहम्मद शाह - 

इस युद्ध में कुंभा ने दिल्ली सुल्तान को चंबल घाटी के आसपास हराया तथा इसी युद्ध के कारण दिल्ली सल्तनत केवल दिल्ली महरौली तक सिमट गयी थी 

♦1456 ई० नागौर का युद्ध - 

राणा कुंभा बनाम 🆚कुतुबुद्दीन शाह( गुजरात सुल्तान+शम्श खान( नागौर सुल्तान) 

इस युद्ध कुम्भा ने बहुत बहादुरी से जीता ,तथा गुजरात सुल्तान को खदेड़कर नागौर, कंडेला,कासिली,शाकांभरी को जीतकर मेवाड़ में मिलाया 

🔴महाराणा सांगा 

♦1517 ई० खतौली (ग्वालियर) का युद्ध - राणा सांगा 🆚 इब्राहिम लोदी (दिल्ली का सुल्तान) 

सांगा विजयी 

2. गागरोन का युद्ध 1519 ई० vs महमूद खिलजी द्वितीय (मालवा का सुल्तान) 

राणा सांगा विजयी 

3.ईडर का युद्ध 1512-1514 vs मुजफ्फर शाह (गुजरात का सुल्तान)

राणा सांगा विजयी 

4. धौलपुर का युद्ध 1518ई० vs दिल्ली सल्तनत- (राणा सांगा का आगरा के समीप तक कब्जा )

5. बयाना का युद्ध 1525 ई० vs बाबर ( मुगल आक्रांता) सांगा विजयी 

6. मंदसौर और चम्पानेर का युद्ध 1520 ई० vs दिल्ली सल्तनत और मालवा अफगानिस्तान की मुस्लिम सेनांए ( सांगा विजयी)

♦राणा सांगा ( महाराणा प्रताप के दादा जी)का साम्राज्य (1509-1527) संपूर्ण उत्तर भारत में रहा उनकी सीमाए सिंध नदी से नर्मदा गुजरात और केन तथा बेतवा से यमुना आगरा पानीपत तक छूती थी और दिल्ली के मुसलमान शासकों के अत्याचार के बाद कोई एक नया हिंदू साम्राज्य खड़ा हुआ था ,राणा सांगा ने 99 युद्ध जीतकर मेवाड़ को महाशक्ति बनाकर पूरे उत्तर भारत का केंद्र बना दिया था लेकिन इतिहास में उनका आखिरी युद्ध 1527 ईं में खानवां में बाबर से हुआ था जिसमें सरदार सिल्हड़ी की गद्दारी और पुरानी तकनीक के कारण उनकी हार हुयी थी खानवा के बाद भी वो जीवित रहे थे 

♦1512 ई० से 1527 तक मेदिनीराय प्रतिहार और प्रथ्वीराज कच्छवाहा ,राणा सांगा के सेनापति थे जिन्होंने कई झड़पों में बाबर और दिल्ली सल्तनत की फौज को हराया था 

♦1529 ई० नागौर का युद्ध - मालदेव राठौड़ 🆚 खान जादा दौलत खान + शेख मुहम्मद - 

ये युद्ध जोधपुर का प्रतिशोध था नागौर के ऊपर जिसमें मालदेव जीते थे 

♦1544 ई० गिरी सुमेल का युद्ध - मालदेव राठौड़🆚शेरशाह सूरी- 

दिल्ली के सुल्तान ने 80,000 की सेना के साथ मारवाड़ पर हमला किया जिसके जवाब में मालदेव के वीर सेनापति राव जैता और कूम्पा ने 5,000 हजार की सेना के साथ सूरी को मुकाबला किया और 40,000 अफगानों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन इस युद्ध में सभी राजपूत वीरगति को प्राप्त हुये और शरीर युद्ध जीता लेकिन जमीन नहीं जिसके बाद वह दिल्ली वापस भागा  

♦जुलाई 1555 ई० जोधपुर का युद्ध - 

मालदेव राठौड़ बनाम 🆚 शेरशाह सूरी -

11 साल बाद पूरी तैयारी के साथ गिरी सुमेल युद्ध का बदला इस बार मालदेव ने जोधपुर में लिया जहाँ उसने डेरा डाले बैठी अफगान सेना पर हमला कर दिया और भीषड़ युद्ध में उन्हें हराकर खदेड़ दिया 

♦1566 ई० - राव चंद्रसेन राठौड़ 🆚 अकबर -

 यह युद्ध स्वाभिमान का युद्ध था जिसकी कीर्ति सारे राजपूताना में फैली थी हारने के बाद भी चंद्रसेन ने अधीनता नहीं स्वीकारी और 1581 तक मारवाड़ के लिए मुगलो से लड़ते रहे 

♦1567 ई० चित्तौड़गढ़ का युद्ध - राणा उदय सिंह 🆚 अकबर - 

इस युद्ध में भयानक रक्तपात हुआ था प्रारंभ में अकबर जीता लेकिन उदयसिंह ने वापसी करते हुये अकबर की सेना को चित्तौड़ से खदेड़ दिया लेकिन उससे पहले अकबर ने वहाँ 30,000 नागरिकों की हत्या कर दी थी 

🟡महाराणा प्रताप 

♦1576 ई० हल्दीघाटी का युद्ध- महाराणा प्रताप 🆚अकबर 

- इस युद्ध के परिणाम विवादित है लेकिन अंततः विजय महाराणा प्रताप को मिली थी जिसमें 8000 राजपूतों ने 75000 की मुगल सेना को हराया था 

♦1582 ई०- दिवेर का युद्ध - महाराणा प्रताप 🆚 अकबर - 

यह युद्ध महाराणा प्रताप ने बड़ी ही रणकौशल के साथ जीता था और लगभग 95% मेवाड़ पर अधिकार जमा लिया था और 300 से अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त कर मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतारा था इसी युद्ध से महाराणा प्रसिद्ध हुये थे और दिल्ली बुरी तरीके से डर गयी थी तथा अधिकांश रियासत स्वतंत्र हुयी थी

♦1606 ई० दिवेर का दूसरा युद्ध राणा अमर सिंह🆚 सम्राट जहांगीर - 

इस युद्ध में जहाँगीर को हारना पड़ा तथा मेवाड़ की स्वतंत्रता महाराणा प्रताप के जाने के बाद भी कायम रही 

(💍महाराजा अमर सिंह राठौड़ ने मुगल सम्राट जहाँगीर के दरबार में उसके साले सलावत खान का सिर काट दिया था )

♦1671 ई० बुंदेलखंड का युद्ध महाराजा छत्रसाल 🆚 औरंगजेब - 

यहाँ पर मुट्ठी भर बुंदेला राजपूतों ने छत्रसाल के नेतृत्व में औरंगजेब की 3 लाख विशाल सेना को हराया था और एक युद्ध में औरंगजेब को हराकर छत्रसाल ने अपने घुटने पर ला दिया था तथा इस युद्ध ने भारत और बुंदेलखंड का इतिहास बदलकर रख दिया,जिससे मुगलो का दक्षिण में जाने वाला रास्ता कट गया था तथा शिवाजी के मराठो को नया साथी मिल गया था और 1671 के बाद 1730 तक महाराज छत्रसाल ने राज किया था 

♦1680 ई० अरावली की पहाड़ियों का युद्ध - - दुर्गादास राठौड़ + राणा राज सिंह 🆚 औरंगजेब

इस युद्ध में मारवाड़ पर घेरा डाले बैठे औरंगजेब को मेवाड़ के राणा राज सिंह और दुर्गादास द्वारा पराजित कर खदेड़ दिया और औरंगजेब को पकड़ने के बाद भी जीवित छोड़ दिया 

♦1707 ई० - जोधपुर का युद्ध 

वीर दुर्गादास राठौड़🆚 औरंगजेब - 

यह युद्ध जोधपुर के महाराज अजीत सिंह के लिए दुर्गादास ने लड़ा था जिसमें मुगलो की 2 लाख की सेना को 80,000 राजपूतों ने हराया था और जोधपुर हासिल किया

♦ 1708 ई० राजपूतों का विद्रोह- 

आमेर+उदयपुर+जोधपुर 🆚 मुगल बहादुर शाह प्रथम - यह युद्ध राजपूताना के सिरमौर आमेर रियासत के लिए लड़ा गया था जहाँ बड़े राजपूत राज्यों ने एक होकर सैयद हुसैन खान बरहा के नेतृत्व वाली मुगल सेना को आमेर से पराजित कर भगा दिया और मुगल सेनापति मारा गया तथा बहादुरशाह का राजपूताना विजय अभियान ध्वस्त हो गया 

इस युद्ध के बाद मुगल साम्राज्य लगभग खत्म होने की कगार पर आ गया था 

(इसके बाद छत्रपति शिवाजी के मराठो ने मुगलो पर आखिरी वार किया था और 1760 में दिल्ली पर सदाशिव राव ने भगवा झंडा फहराया था तथा पेशवा बाजीराव ने मुगल साम्राज्य का का पूर्णतः समाप्त कर दिया था और इसके बाद सारे राजपूतों ने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी )

♦1709 ई० बैटल आफ कामा ( जयपुर) - अजित सिंह कच्छवाहा बनाम 🆚 मुगल फौजदार रजा बहादुर + जाट राजा चूड़ामन 

यह युद्ध मुगलो ने फिर एक बार जाटों के साथ मिलकर 18 हजार की सेना के साथ जयपुर को जीतने के लिए किया जहाँ जयपुर के एक दुर्ग के राजपूत जमींदार अजित सिंह कच्छवाहा की 10 हजार की घुड़सवार सेना से हुये मुकाबले में मुगलो और जाटों के पावं उखड़ गये और बुरी तरीके से कच्छवाहा घुड़सवारो द्वारा वे पराजित हुये 

🔶 1808 ई० में पेशावर पंजाब के 8000 राजपूतों ने 120000 की पश्तून अफगान सेना को हिंदुकुश पर्वत के निकट हराया तथा इन युद्ध को भारत सरकार ने छुपा दिया केवल सारागढ़ी के युद्ध को ही दिखाया हमसे 


🔴 सितंबर 1857 - Siege of auwa ऊवां की लड़ाई - कुशल सिंह राठौड़ 🆚 अंग्रेज कैप्टन मैसन और ब्रिगेडियर लारेंस - 

इस लड़ाई में जोधपुर के राठौड़ों ने 1857 में हुई स्वतंत्रता क्रांति के तहत अंग्रेजो के जोधपुर में सैन्य छावनियों को उड़ाया जिसके फलस्वरूप ऊंवा में भीषड़ युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजो को हारकर भागना पड़ा 

⭕1857 की क्रांति में बिहार के राजपूत राजा बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजो को पराजित किया और भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पहली जीत दिलाई 

⭕इंदौर के वीर महाराजा राजा बख्तावर सिंह और धारा के परमार राजाओं ने अंग्रेज छावनियों को नष्ट किया और कई अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारा 

⭕ भारतीय स्वाधीनता संग्राम में रामप्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह,महावीर राठौड़ जैसे योद्धा ओ ने अपना बलिदान दिया 

⭕ 1911में जोधपुर की जोधपुर लांसर्स के राजपूत घुड़सवार फौज ने हजारों मील दूर इजराइल देश में आटोमन तुर्की की सेना को हराया और हाईफा शहर पर कब्जा किया जिसके नायक मेजर दलपत सिंह शेखावत थे 

🙏🙏🙏🙏🙏

  सभी तथ्य 👉Source..... 

^ Asoke Kumar Majumdar 1956, pp. 131-132.

^ Dasharatha Sharma 1959, p. 138.

^ R. B. Singh 1964, p. 259.

^ a b c d Sen 1999, p. 336.

^ Beny & Matheson, p. 149.

^ Maheshwari, Hiralal (1980). History of Rajasthani Literature. Sahitya Akademi. p. 17.

^ Sen, Sailendra (2013). A Textbook of Medieval Indian History. Primus Books. pp. 116–117. ISBN 978-9-38060-734-4.

^ The History of Qurana Turks pg. 358

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 36.

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 5.

^ A Textbook of Medieval Indian History. Primus Books.

^ Har Bilas Sarda "Maharana Kumbha: sovereign, soldier, scholar" pg 47

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 4.

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 30.

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^ A Textbook of Medieval Indian History. Primus Books. pp. 116–117

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 9.

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 11.

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 12.

^ Rajasthan through the ages vol 5, pg 12.

^ Indian States a biographical, sustainable and administrative survey by jw solomon

^ The Hindupat, the Last Great Leader of the Rajput Race. 1918. Reprint. London pg 84-86

^ Rajasthan pg.70 by Dharmpal

^ Tarikh -i Daudi Farid bin Hasan Sur entitled Shir Shah fol 114

^ Mahajan, V.D. (1991, reprint 2007). History of Medieval India, Part II, New Delhi: S. Chand, p.43

^ Akbarnama II pg 72

^ Jodhpur Khyat pg 76

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^ Medieval India: From Sultanat to the Mughals Part - II pg-120, by Satish Chandra

^ Rajsamand (2001), District Gazetteers, Rajasthan, p. 35, The battle of Dewar was fought in a valley of Arvali about 40 km north -east of Kumbhalgarh. ... Prince Amar Singh fought valiantly and pierced through Sultan Khan and the horse he was riding.

^ A military history of medieval India, 2003, p. 530, Prince Pravez and Asaf Khan led an army of 20,000 horse which fought a battle against Rana Amar Singh at Dewar

^ The Cambridge History of India pg 248-304

^ Maharana Raj Singh and His Times By Ram Sharma

^ Storia do Mogor By Niccolao Manucci

^ Cambridge history of India pg. 304

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^ AKhbarat, Kartik Sudi 5, Samvat, 1765 (7 October 1708) quoted by U.N. Sharma, Itihas, I, 215, 212-215

^ Kamwar, II, 315

^ Dwivedi 2003, p. 61

^ A History of Jaipur pg-200 by Jadunath Sarkar

^ Fall of the Mughal Empire pg-139-140 by Jadunath Sarkar

^ Harcharandas in Chahar Gulzar 377b-379b

James Tod Marwar ii, chapter 11

^ Rajasthan Through the Ages pg 182

And many more.